चौराहे पे बचपन

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आज सड़क के चौराहे पर
रुका जाम के कारण मै
सबको जल्दी थी जाने की
लगा था मै भी उस रण मैं ।।

मुझसे बस थोड़ी ही आगे
इक गाड़ी जो थी अड़ी हुई
वहाँ मैले पुराने कपड़ो में
इक छोटी बच्ची खड़ी हुई ।।
था कमर पे उसने एक तरफ
इक छोटा बच्चा लटकाया
कुछ मिल जाने की चाहत मेँ
था कांच कार का खटकाया ।।

बोली बच्चे को दिखलाकर
बाबू कुछ खाने को दे दो
भगवान तुम्हारा भला करे
हो सके तो कुछ आने दे दो।।
माँ बाप का साया मिला नही
संग में इक छोटा भाई है
आप सभी जो कुछ दे दें
बस अपनी यही कमाई है।।

बेबसी और लाचारी ने
तब रक्त नसों में जमा दिए
जब मोटर वाले बाबू ने
दो पैसे उसको थमा दिए ।।
फिर कांच चढ़ा कर गाडी के
वो अगला गियर डाल गए
मानवता के उस रिश्ते की
वो ज़िम्मेदारी टाल गए ।।

क्या इन सब की लाचारी का
दो चार रूपए से होगा हल
जो हाथ यहाँ फैलाये था
था देश का आने वाला कल ।।
जहाँ किताबे होनी थी
वो हाथ उठे लाचारी में
इस देश का काला कड़वा सच
दिख रहा था उस बेचारी में ।।

पापी इस पेट को भरने को
जा रही थी वो मोटर मोटर
सब अनदेखा कर देते थे
जाना था सबको जल्दी घर ।।
देख इसी बेरहमी को
दिल अंदर से है डोल गया
अब मुझको ही कुछ करना है
कोई अंतर से है बोल गया ।।

सहसा ही आखो ने देखा
कि जाम लगा था अब खुलने
वो परोपकार की तस्वीरें
क्षणभर मेँ लगी थी तब धुलने ।।
उस तेज़ छूप की गर्मी से
मुझको भी जल्दी जाना था
पर इतना जो कुछ सोच लिया
तो कुछ तो करके जाना था।।

जल्दी से बटुए में देखा
तो खुले हुए थे चार रुपए
आनन फानन में बच्ची के
हाथों में मैंने थमा दिए ।।
खुद की इस खुदगर्ज़ी को
अंतर्मन ने था ताड़ लिया
अपनी अपनी किस्मत कहकर
तब मैंने पल्ला झाड़ लिया ।।

और इसी तरह चौराहो पर
हर रोज़ ही बचपन रोता है
जब खेल खिलोनो की जगह
हाथो में कटोरा होता है ।।
हर रोज़ ही इनके बारे में
कई बाते सोची जाती हैं
जब करने की बारी आती
तब बातें ही रह जाती है।।

मोहताज़ नही ये पैसो के
इनका हक़ भी तो शिक्षा है
उन हाथों को कुछ हुनर मिले
अभी मांग रहे जो भिक्षा है।।
जल्दी जाने की जल्दी में
गर सब ऐसे ही जाएंगे
क्या आने वाली पीढ़ी को
हम ये भारत दिखलायेंगे।।


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