मैं भी अपने समय से थोड़ा पार था ।
कभी मेरे अंदर भी एक कलाकार था ।।
वो खो गया, या चला गया है कहीं,
मैं ढूंढता हूं बहुत, पर मिलता ही नहीं।
किसी जमाने में वो....मेरे साथ था,
मेरा हमसफ़र ही नहीं, विश्वास था ।।
लिखवाता था मुझे वो ,
हवाओ , घटाओं ,नदियों ,
फूलो और बरसात पे।
अब तो अरसा हो गया है ,
बैठे उसके साथ में ।।
वो , चला गया है दूर ,
कमी इसमें मेरी भी नहीं।
क्युकी जब मुझे चुनना पड़ा,
तो मैंने घर की जिम्मेदारियां चुनीं।।
फिर मैं ही भूल गया उसको ,
एक बेतुकी सी दौड़ में।
किसी से आगे बने रहने, और
किसी को पीछे छोड़ने की होड़ में ।
पर आज......जब देखता हूं खुद को ,
नींद भरी आंखों से, दिन- रात जाग रहा हूं।
मैं कहीं पहुंचा ही नही, बस भाग रहा हूं।।
फिर हो सके तो कोई.... एहसास दे मुझे,
फिर से कुछ लिख सकूं, कोई राज़ दे मुझे।
माना की तू नाराज है, पर दूर नही है मुझसे,
गर है मेरे अंदर कहीं...….तो आवाज दे मुझे।।
लेखक - विशाल
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