आ बैठ जिंदगी ..हिसाब करते हैं

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आ बैठ ज़िन्दगी........ , हिसाब करते हैं ।

चल देख कोई फुर्सत की शाम,
फिर साथ मे लेंगे इक इक जाम,
तू कागज़ कलम भी ले आना,
उन पर लिखेगे बही तमाम।।

तेरे हर इक तल्ख सवालो का ,  आज जवाब करते हैं।
आ बैठ ज़िन्दगी........... , हिसाब करते हैं।।

एक पन्ने पर जो दिया मुझे, 
दूजे पे लिख जो छीना है,
और भूल न जाना ये लिखना 
कि कब तक ऐसे जीना है।

क्या बूंद बूंद ऐसे जीना , चल आज सैलाब करते हैं ।
आ बैठ ज़िन्दगी .............., हिसाब करते हैं।।

इक पन्ना खुशियों का होगा , 
दूजे पे ग़म लिखना होगा ,
खुशियो वाले को रंग देंगे , 
पर उस पर कम लिखना होगा।।

और गम इतना है कि उसकी, इक अलग किताब करते हैं।
आ बैठ ज़िन्दगी............, हिसाब करते हैं ।।

कुछ सपने भी तो लिखने हैं ,
जो टूट गए बनते बनते ,
उन अपनो का भी ज़िकर करो
जो छूट गए चलते चलते ।

उन भूली बिसरी यादों को , आज फिर आदाब करते हैं ।
आ बैठ ज़िन्दगी................., हिसाब करते हैं ।।

ये कर्ज़ा भारी है लगता ,
अब तेरे बस की बात नही 
क्या कहा नही हो पायेगा ?
चल छोड़ फिर कोई बात नही।।

ये जाम खत्म तो कर ले अब , हम सबकुछ माफ करते हैं।
आ बैठ ज़िन्दगी.............., दिल साफ करते हैं।।

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