बहुत समय पहले की बात है, एक जंगल में एक लकड़बग्घा था। उसका नाम बहादुर था। बहादुर अपने झुंड का मुखिया था। उसके पास एक छोटा सा बच्चा था जिसका नाम रोमी था।
पर रोमी एक उत्सुक और महत्वकांक्षी बच्चा था, उसे गुफा में रहना पसंद नही था। वो भी अपने पिता की तरह सबके लिए शिकार करना चाहता था । वो भी अपने पिता की तरह बनना चाहता था , क्योंकि उसके झुंड के बड़े सदस्यों ने उसे बताया था कि उसके पिता को बहादुर इसलिए बुलाया जाता हे क्योंकि वो किसी से नहीं डरते ,शिकार में सबसे अव्वल रहते हैं । और सबकी सुरक्षा करते हैं।
इस तरह रोमी की नज़र में अपने पिता एक हीरो थे और वह जल्दी ही अपने पिता की तरह बनना चाहता था ।बहादुर हर शाम खाना खाने के बाद गुफा की ऊपरी चट्टान पर चढ़कर बैठता था। वहा शान से डूबते सूरज को देख अपने झुंड के बारे में चिंतन मनन किया करता था ।
रोमी का सपना था वो भी ऐसे ही अपने पिता की तरह ऊंचाई पर बैठे । वह कई बार चढ़ने की कोशिश करता था , पर छोटी उम्र और नन्हे पंजों की वजह से कभी चढ़ नही पाता था । बहादुर उसे कोशिश करता देख मुस्कुराता था , और कहता की अगर तुम कोई काम करने की सोच लेते हो , तो उसे कर भी सकते हो ।
फिर रोमी कहता है की लगता है में कभी भी नही चढ़ पाऊंगा , और आप जैसा नही बन पाऊंगा । तब बहादुर उसे हिम्मत बधाता है यह कहकर की समय आने पर वह सब कर लेगा । क्युकी वह खुद भी जानता था की इतने छोटे रोमी के लिए अभी इतनी ऊंचाई चढ़ना नामुमकिन सा ही है।
एक दिन रोमी ने अपने पिता से कहा की वो भी शिकार में साथ जाना चाहता है, पर बहादुर जानता था की रोमी इसके लिए अभी बहुत छोटा है , इसलिए उसने रोमी को साथ आने से मना कर दिया ।
रोमी दुखी हो गया , पर वह किसी भी तरह बाहर की दुनिया देखना चाहता था । अपने झुंड को शिकार करते हुए उनकी बहादुरी देखना चाहता था ।
इसलिए उसने अपने झुंड के एक सदस्य सक्खा जो बहुत कमजोर सा था और शिकार में हमेशा बस पीछे रहता था। उससे बात करने की सोची ।
सक्खा को झुंड में कोई बहुत इज्जत नहीं मिलती थी , इसलिए उसे मनाना रोमी के लिए मुश्किल नहीं था । उसने सक्खा को कहा की चाचा तुम बहुत अच्छे और उपयोगी सदस्य हो , तुम शिकार के वक्त पीछे से झुंड की रखवाली करते हो इसलिए ही आगे वाले लोग शिकार कर पाते है। पर आपके इस योगदान की कोई इज्जत नहीं करता। पर में आपको अपना हीरो मानता हूं।
रोमी ने कहा की चाचा में आपकी बहादुरी देखना चाहता हूं, तो सक्खा पहले तो मना करता रहा पर रोमी के ज्यादा जोर देने पर वह इस शर्त पर तैयार हो गया की वह उसके पीछे पीछे ही रहेगा और दूर नही जायेगा।
रोमी का तो जैसे खुशी का ठिकाना न रहा। वो जाकर खुशी खुशी बाहर जाने की तैयारी में जुट गया।
शाम हुई , बहादुर सभी बड़े सदस्यों को लेकर शिकार के लिए निकलने लगा और उसने सक्खा को भी आने को कहा , सक्खा ने थोड़ी देर में आता हूं, ऐसा कहकर नजर नीचे कर ली । बहादुर जानता था की वह वैसे भी शिकार में मदद नही कर सकता तो वो बिना कुछ कहे अन्य सदस्यों को लेकर चल दिया ।
उसके कुछ देर बाद सक्खा रोमी को लेकर निकला ।
रोमी पहली बार अपनी गुफा से बाहर निकला था , वह आसपास की पेड़ पौधों जानवरो पक्षियों को बहुत हैरानी से देख रहा था ।
रोमी ने आसमान में उड़ते एक बाज को देखकर सक्खा से पूछा की चाचा ये क्या है?
सक्खा बोला - वह एक बाज हे, एक पक्षी, जो हवा में उड़ सकता हे।
रोमी -" हम क्यों नहीं उड़ सकते?"
सक्खा- क्योंकि हम लकड़बग्घे है।
थोड़ी दूर चलकर आगे हाथियों का झुंड दिखाई दिया,
रोमी - " चाचा ये क्या हे और यह इतने बड़े और ताकतवर केसे बन गए की बड़े बड़े पेड़ो को भी आसानी से उखाड़ देते है। हम भी क्या ऐसे बन सकते है?"
सखा (झुंझला कर) - ये हाथी है , और ऐसे कभी नहीं बन सकते, क्योंकि हम लकड़बग्घे हैं।
रोमी को थोड़ा असहज महसूस हुआ । उसके मन में और सवाल खड़े हुए पर वो अभी शांत रहा ।
तभी उनके सामने से एक हिरण बहुत तेज दौड़ता हुआ निकला ।रोमी ने हिरण देखा था क्योंकि कई बार हिरण का शिकार करके झुंड लाया था। उसे देखकर वह थोड़ा खुश हुआ था की इतना तेज जानवर का शिकार करके उसके पिता लाते थे, वे सचमुच साहसी हैं।
तभी एक पलक झपकते ही एक बहुत तेज जानवर आया और उसने हिरण को पकड़ कर उसका शिकार कर लिया।
सक्खा जानता था की रोमी का सवाल आने वाला ही है इसलिए खुद ही बोल पड़ा - यह एक चीता है जो सबसे तेज जानवर हे। और ये मत पूछना की हम इतनी तेज भाग क्यों नहीं सकते ।
रोमी - " हां , समझ गया , क्योंकि हम लकड़बग्घे हैं।
रोमी मन ही मन खुद के लकड़बग्घे होने को धीरे धीरे अपनी कमजोरी समझता जा रहा था । सक्खा के हर जवाब के साथ उसका आत्मविश्वास टूटता जा रहा था ।
आगे जाकर वे दोनो उस जगह पहुंच गए जहा बहादुर अपने बाकी झुंड के साथ शिकार कर रहा था।
रोमी ने एक चट्टान पर चढ़कर अपने झुंड को शिकार करते देखा ।
उसकी उम्मीदों पर पानी फिर गया। उसने देखा की उसका झुंड एक भालू जो अपने शिकार को खा रहा है उसको घेर कर बैठा है। तभी एक लकड़बग्घा एक तरफ से उसके शिकार पर मुंह लगाता है और भालू उसे मारने को उसके पीछे कुछ दूर तक जाता है, तब तक दूसरा लकड़बग्घा शिकार में से एक टुकड़ा उठा कर भाग जाता है।
यह सब देखकर रोमी के आत्मविश्वास को बहुत ठेस पहुंची ।एक पल में खुद को बहुत कमजोर असहाय और अपने लकड़बग्घा होने पर शर्मिंदगी महसूस करने लगा।
मायूस टूटा हुआ वह सिर झुकाए कुछ सोच रहा था की तभी एक जोरदार गर्जना हुई , रोमी के तो मानो हाथ पैर कांप गए , आसपास सभी पशु पक्षियों में उथल पुथल मच गई , सक्खा भी डर के मारे सुकड़ सा गया।वह जानता था की यह निश्चित तौर पर खूंखार शेर जारदल की दहाड़ है।
जो इस इलाके का बेताज बादशाह है, और एक निर्दयी हत्यारा भी है।
रोमी ने देखा की उसके पिता बहादुर ने सभी झुंड को वापस
चलने का इशारा किया , और घर की तरफ सबको लेकर दौड़ लगा दी । रोमी को अपने पिता पर इतना गुमान था की उसे एक पल को विश्वास नही हुआ। उसे लगता था की उसके पिता किसी से नहीं डरते थे । यह पल उसके मनोबल को तार तार करने के लिए काफी था । वह कुछ समझता तब तक सक्खा ने उसे जोर से घर की तरफ भागने को कहा , वो दोनो भी दौड़ पड़े ।
पर भागते भागते कुछ बूढ़े लकड़बग्घे पीछे रह गए जिनमें झुंड के सबसे समझदार दीनू काका भी थे , रोमी ने देखा की पास के झाड़ से एक लंबी छलांग लगाकर जारदल गुर्राते हुए निकला और एक दबोच में ही दीनू को गर्दन से दबोच लिया । रोमी ने पहली बार शेर को देखा था , उसके आकार , ताकत , और खूंखार दांतो को देखकर वो इतना डर गया की बिल्कुल सहम गया । उसे कुछ सूझ नही रहा था की क्या करे । वो बस शेर को देख रहा था जिसके जबड़े में उसके दीनू काका की गर्दन थी । उसके सामने ही जारदल ने दीनू की गर्दन तोड़ कर उसे मार दिया ।
रोमी एकदम ठिठका हुआ खड़ा था , और शायद वो जारदल का अगला निशाना बनता , उससे पहले सुक्खा वापस भाग कर आया और रोमी को अपने मुंह से पकड़ कर तेजी से वहां से भाग कर झाड़ियों से होते हुए छोटे रास्ते से लेकर उसे बाकी झुंड से पहले गुफा तक ले आया । उनके थोड़ी देर बाद ही बाकी का झुंड भी वापस आ गया ।
झुंड में सबकी गिनती हुई , पर सबको पता था आज फिर उनके सर से एक बुजुर्ग का साया उठ गया है। दीनू हमेशा झुंड को सही शिक्षा देकर पूरे झुंड को चलाने में अहम भूमिका निभाते थे । सब गमगीन हैं । सब टूटे हुए हैं , पर बहादुर जो अपना भाई खोने के बाद आज अपने काका को खोया है वो अपने दर्द को अंदर रख कर मजबूत बन कर सबको तसल्ली देता है । और लाया हुआ शिकार सब को मिल बांटकर खाने को कहता है। उसे पता है की सरदार को टूटा देख पूरा झुंड ही टूट जायेगा । इसलिए वह आज सख्त बनेगा ।
बहादुर नही जानता था की बाकी सब तो दुखी हे ही , पर उसका अपना बेटा रोमी दुखी के साथ बड़े सदमे में भी है। आज वह खुद के वजूद पर भी दुखी हे।
बहादुर शिकार का एक टुकड़ा लेकर रोमी के पास पहुंचता है और उससे कहता है - आज जो हुआ वो दुखद है पर जीवन ऐसे ही चलता है। ज्यादा मत सोचो , ये लो शिकार कर के लाए हैं, इसे खा कर मजबूत बनो । कमजोरो के साथ प्रकृति ऐसा ही करती है।
रोमी - " जो आप लाए हैं,उसे शिकार नही कहते । इसे दूसरो का खाना चुराना कहते हैं। और इसे खाकर में क्या ही बनुगा , रहूंगा तो एक लकड़बग्घा ही , शेर चीता हांथी या बाज तो नही बन जाऊंगा । "
बहादुर ये सब सुनकर स्तब्ध रह गया । उसे नही समझ आ रहा था की बाहर की दुनिया , वहां के शिकार के लिए उत्सुक रहने वाला रोमी अचानक ऐसा केसे हो गया ।
उस समय उसके पास समझाने के लिए न शब्द थे और न रोमी के पास समझने की उम्र । तो बहादुर ने खाना वही छोड़ चुपचाप वहां से जाना ही सही समझा ।
उसने बाहर जाकर पता किया की उसके जाने के बाद रोमी को क्या हुआ तो पता चला की रोमी उस बीच गुफा में था ही नही ।
बहादुर को समझते देर न लगी की इसमें सुक्खा का हाथ है क्योंकि उसे याद आया की सुक्खा ने शिकार को जाते वक्त थोड़ी देर में आने को कहा था ।
उसने सुक्खा से पूरी बात पूछी , सुक्खा ने डरते हुए पूरी बात बता दी । बहादुर को उस पर गुस्सा तो आया पर वह इस समय किसी फैसले को लेने में सक्षम नही था । उसने बस सुक्खा को अपनी नजरों से दूर होने को कहा और गुफा के ऊपरी चट्टान पर चला गया ।
सुक्खा ने सोचा था की बहादुर उसे पसंद नही करता है तो इस गलती पर उसे कम से कम झुंड निकाला तो देगा ही । पर बहादुर के इस फैसले ने उसे सोचने पर मजबूर कर दिया । उसे अपनी गलती का एहसास हुआ । पछतावे से जलते हुए वह रोमी के पास गया । और उससे माफी मांगी ।
रोमी - "अरे चाचा आप क्यों माफी मांग रहे , मेने जो भी आज जाना है वो खुद की आंखों से देखा है । हम लकड़बग्घे है और हमारे अंदर कोई खूबी नही है। हम में से कोई भी कभी बहादुर नही हो सकता , मेरे पिता भी नही,उन्हें भी मेने जारदल के आगे डरकर भागते देखा है। "
सुक्खा ने उसे टोकते हुए कहा - रोमी बड़े दुख की बात है की बहादुर का बेटा ही उसके बारे में इतना गलत सोचता है। बहादुर मजबूर है लेकिन डरपोक नहीं।
रोमी - मजबूर ? कैसा मजबूर ..चाचा ?
फिर सुक्खा ने सारी बात रोमी को बताई ।
- "बहादुर का एक छोटा भाई भी था , तेजदर। वो बुद्धि से काफी तेज था । दोनो भाईयो में बहुत प्यार था । दोनो मिलकर झुंड का नेतृत्व करते थे । और मिलकर शिकार किया करते थे । एक बार शिकार का पीछा करते करते तेजदर गलती से शेर के इलाके में पहुंच गया ।
जारदल को अपनी शक्ति का घमंड इतना था की वह छोटी छोटी गलतियों पर भी किसी की जान लेने में कतराता नही था । उसे किसी की भी जान लेना खेल लगता था ,और अपने स्वभाव के स्वरूप उसने तेज़दर पर हमला कर दिया
। बहादुर अपने भाई को बचाने के लिए जारदल से भिड़ गया था , दोनो भाईयो ने उसका काफी देर डटकर मुकाबला किया , पर फिर तेजदर को आभास हो गया की जारदल उन दोनो को ही मार डालेगा । तो उसने बहादुर को धक्का देकर शेर की आंख में पंजा मारते हुए उसे अपने पीछे भगाते हुए ले गया । बहादुर जब तक संभल कर अपने भाई तक पहुंचा तो उसने देखा की तेज़दर जमीन पर मृत पड़ा है और जारदल उसके गर्दन पे पंजा रख के खून सने मुंह से दहाड़ रहा है।
बहादुर गुस्से में अपने भाई का बदला लेने जारदल की और भागने को हुआ , किंतु उसे झुंड के बाकी बड़े बुजुर्गो ने रोक लिया । और उसे समझाया की बदले से ज्यादा इस समय झुंड की सुरक्षा उसकी मुख्य जिम्मेदारी है। बहादुर उस दिन लौट तो आया , पर हमेशा उसके अंदर टीस बनी रही । उसे हमेशा अपने भाई तेजदर की आखिरी कही बात याद आती
रही की झुंड का ख्याल रखना ।
बस इसी वजह से वह अपने अंदर के गुस्से को दबाए रहा है। क्युकी उसे भी पता है की झुंड के मुखिया की जारदल के खिलाफ बगावत का मतलब है पूरे झुंड का सर्वनाश , वो एक एक करके सबको मार डालेगा ।
बस यही एक डर बहादुर को हमेशा अंदर से खाए जाता था जो उसे जारदल के सामने बेबस बनाता था ।
आज उसकी गर्जना सुनकर भी बहादुर को गुस्सा और भय का संयुक्त आभास हुआ होगा। शायद अब समय के साथ गुस्सा कम पड़ गया पर भय बढ़ता गया । जो उसके हाव भाव से झलक भी रहा था ।की कैसे अपने भाई को बचाने को बहादुर खूंखार शेर से लड़ गया था । फिर किन मजबूरियों से आज भी उसने अपने हाथ बांध रखे हैं उसे ही पता है। "
पूरी बात जानकर रोमी को अपने कहे पर पछतावा होने लगा । वो सोच में पड़ गया की इतने दुख के माहोल में भी अपने पिता को उसने इतना दुख दिया ।
खैर उसने अपने सुक्खा चाचा को गले लगाया , और वहा से सीधे अपने पिता को खोजने गुफा में निकल पड़ा।
सभी जगह देखने पर ना मिले तो उसे पता था की उसके पिता अक्सर ऐसी मुसीबत के समय एकांत चिंतन करने ऊपर की चट्टान पर जाते है।
हालाकि रोमी के लिए वहा चढ़ना मुश्किल था और वो आज से पहले कभी उस पर भी चढ़ पाया था । पर आज उसे अपने पिता से माफी मांगनी ही थी तो वह पूरा जोर लगा कर थोड़ी कोशिश के बाद ऊपर चढ़ ही गया । उसने अपने पिता को बस डूबते सूरज की और नजर गड़ाए कुछ सोचते देखा । वो पास पहुंचा और अपने पिता को एक धीमी आवाज दी । बहादुर ने मुड़ कर देखा , रोमी को देखकर अपने आंसू छिपाते हुए दूसरी ओर मुंह फेरते हुए बोले - हां , कहो क्या बात है?
रोमी -" पिता जी , आज मेने आपकी बात नही मानी , बाहर गया , खुद को खतरे में डाला । दीनू काका के जाने के दुख को नही समझा , और आपसे भी गलत बोला । मुझे माफ कर दीजिए । आज के बाद में आपकी सारी बात मानुगा । कभी शिकार पर जाने को नही कहूंगा , गुफा के बाहर भी कभी नही जाऊंगा। "
"ठीक है"- बहादुर ने बस इतना कहा , और कहा अब तुम जाओ ।
रोमी मायूस सा होकर वापस लौटने लगा । कंधे झुकाए सिर लटकाए वापस जा ही रहा था की पीछे से बहादुर ने उसे आवाज दी - रुको रोमी ,.... तुम ... ऊपर ? मतलब इतनी ऊपर कैसे चढ़ के आए ?
रोमी - "मैने ठान लिया था की आज आपसे अभी मुझे माफी मांगनी ही है, में दो बार गिरा चढ़ते चढ़ते । निराश हुआ सोचा की नही कर पाऊंगा , फिर आपकी वो बात याद आई जो आप हमेशा कहते हो - की अगर तुम कोई काम करने की सोच सकते हो , तो तुम उसे कर भी सकते हो । बस फिर मेने थोड़ा दिमाग थोड़ी ताकत थोड़ी सी जुगाड लगाई । और में चढ़ गया । "
बहादुर ने कुछ देर सोचा , फिर अचानक उसके चेहरे पर एक चमक सी आई , उसने रोमी के कहे कुछ शब्द दोहराए - थोड़ा दिमाग , थोड़ी ताकत , थोड़ी जुगाड।
फिर कुछ सोचते हुए बोला - "रोमी , कल तुम मेरे साथ शिकार पर चलोगे। "
रोमी खुश होकर चला गया और बहादुर अबकी एक अलग चमक के साथ एक और देखते हुए कुछ सोचने में लग गया ।
अगले दिन रोमी खुश होते हुए गुफा से निकला तो देखा की झुंड शिकार पर निकलने को तैयार हो रहा है, रोमी खुश है की आज वो अपने पिता के साथ शिकार पर जायेगा ।
उसने उत्सुकता वश इधर उधर देखा , पर आज झुंड में उसे एक अजीब सा माहोल दिखा । जो कभी शिकार पर जाने से पहले उसने किसी में नहीं देखा था । झुंड के बड़े सदस्य निकलने से पहले अपने बीवी बच्चो से इस तरह से मिल रहे थे जैसे की शायद आखिरी बार मिल रहे हों। उनके परिवार में आज उन्हें विदा करते वक्त आंसू थे । बस बहादुर एक दृढ़ भाव बनाए शांत तन के खड़ा था ।
रोमी को समझते देर न लगी की यह शिकार की तैयारी नही है। उसने सुक्खा के पास जाकर पूछा की चाचा हम कहां जा रहे हैं । सुक्खा समझ गया की रोमी कल जल्दी सो गया था तो उसे रात में जो बहादुर ने सबको बुला कर कहा उसके बारे में कुछ नही पता ।
सुक्खा ने कहा - "हम शिकार पर जा रहे हैं" इतना कह कर वो आगे बढ़ गया ।
पर रोमी भांप गया की सुक्खा उससे कुछ छिपा रहा है।
इसलिए वह झुंड में इधर उधर जाकर सबके पास से होता हुआ निकलने लगा , तभी उसके कानो में किसी मादा लकड़बग्घा की आवाज पड़ी जो अपने पति से कह रही थी - "शेर से बैर लेना जरूरी है क्या ? मुझे लगता है, बहादुर का दिमाग खराब हो गया है"
उसके पति ने उसे चुप रहने का इशारा किया । फिर वह मादा अपने पति से लिपट कर रोने लगी ।
इतना सुनना था की रोमी के पैरो तले की जमीन खिसक गई । वो समझ गया की उसके अंदर के डर और खुद के लिए नफरत को दूर करने के लिए उसके पिता ने यह फैसला लिया है।
वह भागता हुआ , बहादुर के पास पहुंचा और बोला - पिता जी , प्लीज ऐसा मत कीजिए । मेरे लिए आप झुंड को खतरे में मत डालिए ।
बहादुर शांत भाव से बोला - " यह बात तुम्हारे बारे में नही है रोमी , यह बात आने वाले झुंड के भविष्य की है(उसने झुंड के अन्य छोटे सबको की और देखते हुए कहा ) ।
और वैसे भी झुंड अब पहले से ही खतरे में आ चुका है। जारदल झुंड के काफी करीब आ गया है, और वह जल्दी ही गुफा तक पहुंच जाएगा । फिर रोज एक मौत होना , और मौत के डर से पल पल मरना आम बात हो जायेगी । फिर हमारे पास जान देने या अपना घर छोड़ कर जाने के अलावा कोई रास्ता नही बचेगा । "
रोमी दुखी होकर बोला - "पर हम कर भी क्या सकते हैं? शेर को कोई हरा नही सकता , और हम तो सिर्फ लकड़बग्घे हैं।"
बहादुर ने रोमी की तरफ देखा और एक हल्की दृढ़ मुस्कान के साथ अपना प्रिय वाक्य बोला - "अगर हम कोई काम सोच सकते हैं, तो उसे कर भी सकते हैं।"
रोमी इस पर निरुत्तर था ।
बहादुर ने फिर कहा - " अगर तुम्हे डर लग रहा है तो कोई बात नही तुम यही गुफा में रुक सकते हो , बाकी बच्चों के साथ "
रोमी ने कुछ नहीं कहा , ना ही बहादुर ने फिर कुछ कहा । दोनो ही जानते थे की वे अब एक दूसरे को रोक नहीं सकते थे ।
बहादुर ने वहा से जाके सुक्खा को बुलाया और उससे धीरे से कहा - "तुम अपना काम जानते हो , मुझे तुम पर भरोसा है।"
सुक्खा -" हां, रोमी की सुरक्षा करना और उसे लड़ाई से दूर रखना ।"
बहादुर ने हामी में सिर हिलाया ।
फिर बहादुर ने तेज आवाज लगाकर गर्जन किया और झुंड उसके पीछे पीछे चल दिया ।
सुक्खा ने रोमी को अपने साथ लिया और पीछे पीछे चलने लगा ।
रोमी ने सुक्खा से मायूस होकर सवाल किया - " चाचा , क्या हम सब मरने वाले हैं? "
सुक्खा - "हां"
ये सुनकर रोमी ने दुख में सर झुका लिया ।
पर तभी सुक्खा बोला - "हम सब मरने वाले है, पर आज नही। आज सिर्फ मरने वाला कोई है तो वो दुष्ट जारदल। हमे बहादुर पे पूरा भरोसा है।"
रोमी को ये सुनकर अच्छा महसूस हुआ , उसमे थोड़ी हिम्मत आई । पर डर उसपर और झुंड के कई सदस्यों पर अभी भी हावी था ।
कुछ दूर चलकर सुक्खा रोमी को एक ऊंची जगह ले गया जहा से उसे रोमी की सुरक्षा और झुंड पर निगरानी करनी थी ।
वहा से एक छोटी पहाड़ी बाद जारदल का इलाका था ।
पर बहादुर उस और न जाकर झुंड को दूसरी ओर ले जाने लगा । रोमी को लगा की शायद उसके पिता ने अपना विचार बदल लिया है । उसने ये बात सुक्खा से पूछी , सुक्खा ने बताया की बहादुर कभी पीछे हटने वाले में से नही है ।
बहादुर और उसके झुंड ने दूसरी ओर एक भैसे को देखा , और घेरा बनाकर उसे धीरे धीरे घेरने लगे । पर घेरे में एक तरफ भैसे के भाग निकलने का रास्ता छोड़ा था । वो रास्ता जो जाता था जारदल के इलाके में ।
अचानक झुंड भैसे पे टूट पड़ा , भैसे ने कुछ देर मुक़ाबला किया पर शिकारियों की ज्यादा तादाद देखकर भागने में भलाई समझी । पर जिस तरफ जाता उसे लकड़बग्घे घेरते मिलते । अंत में उसके पास केवल एक ही रास्ता बचा, भैसे ने बिना सोचे पूरी ताकत से उस ओर दौड़ लगा दी ।और पल भर में वह पहाड़ी पर कर जारद्ल के इलाके में था ।
जारदल वैसे तो आराम कर रहा था , भूखा भी नही था , पर अपने ताकत के घमंड में चूर उसे बर्दाश्त न हुआ की कोई उसके इलाके में इस तरह घुस आए । उसने अपने मन में ही भैसे को मौत का फरमान सुना दिया , और भैसे पर टूट पड़ा । भैंसा भी ताकतवर था , घमासान लड़ाई शुरू हुई । जारदल कभी उसे आगे से पकड़ने की कोशिश करता तो वह सींगो से मारता , कभी पीछे से पकड़ता तो अपनी लातों से । इसी घमासान के वक्त बहादुर का झुंड चार चार पांच पांच की छोटी टुकड़ियों में अलग अलग होता हुआ उन्हें चारो तरफ से घेर रहा था , बस सही वक्त आने का इंतजार था ।
उधर जारदल अपनी पूरी शक्ति झोंक रहा था , उसे कई जगह चोट भी आई , पर आखिर में वह भैसे की गर्दन दबोचने में कामयाब रहा । काफी मशक्कत के बाद वह भैसे को गिराने में कामयाब रहा , पर उसने उसकी काफी शक्ति चली गई थी । यही था बस सही मौका ,। बहादुर अपनी एक छोटी टुकड़ी को लेकर जारदाल पर टूट पड़ा , किसी ने एक पंजा मारा किसी ने थोड़े दांत गड़ाए और एक ओर भाग लिए । जरदल गुस्से से आग बबूला होकर उनके पीछे भागा , पर कुछ दूर बाद टोली के सभी सदस्य अलग अलग दिशा में भाग गए , थका हुआ जारदल ये तय नही कर पाया की किसका पीछा करे। वो वही रुक गया , इतने में एक दूसरी टोली आई और जारदल को यहां वहां घायल किया और फिर भागने लगी, गुस्साया जारदल फिर उनके पीछे भागा और फिर वही हुआ । तब तक तीसरी टुकड़ी का हमला । योजना के अनुसार शेर को आराम का वक्त नही देना है, और यह काम लकड़बग्घों की टुकड़ियां अच्छे से कर रही थी । कुछ देर बाद जारदल काफी घायल हो गया , उसके शरीर से कई जगह से खून बह रहा था । उसमे अब दौड़ने की तो क्या खड़े रहने की हिम्मत भी नहीं रही। तभी एक आखिरी वार बहादुर ने अचानक से किया , अपना पंजा सीधे शेर की आंख पे दे मारा । ये असहनीय साबित हुआ , और जारदल इससे धराशाई हो गया । अब वह जमीन पर पड़ा आखिरी सांसे गिन रहा था । बहादुर और पूरा झुंड उसे घेरे खड़ा था , बहादुर उसे देखते हुए अपने भाई तेजदर और काका दीनू की मौत को याद कर रहा था की कैसे बेरहम जारदल ने उन्हें मारा था । याद करते करते अचानक वह जारदल की गर्दन पर टूट पड़ा और अपने दांतो से उसकी गर्दन का एक टुकड़ा काट कर अलग कर दिया । जारदल तड़पते हुए दम तोड देता है।
सारा झुंड खुशियां मनाने लगता हे और एक सुर में अपनी पारंपरिक हुंकार की आवाज लगाने लगता है।
ऊपर खड़ा रोमी ये सब देखकर खुश था , पर उससे ज्यादा उसे हैरानी थी । उसने आज तक जो भी लगता था वो गलत साबित हुआ । जंगल के दूसरे जानवर भी यह सब देखकर हैरानी में थे ।
रोमी के मन में बहुत से सवाल थे , पर उसने ये सक्खा से पूछना सही नही समझा । वो भागते हुए अपने पिता के पास पहुंचा , उनकी आंखों में एक संतोष का भाव था । आज उन्होंने अपने भाई और काका की मौत का बदला ले लिया था ।
कुछ देर बाद रोमी ने अपने पिता से पूछा -" पिता जी ,जारदल से उलझने का साहस बड़े बड़े जानवर भी नही कर पाते थे । आपने तो उसे मार ही डाला । आपने यह सब कैसे किया ?"
बहादुर ने मुस्कुराते हुए कहा - "थोड़ा दिमाग, थोड़ी ताकत , थोड़ी जुगाड़"
रोमी को याद आया की यह बात उसने ही चट्टान पर चढ़ने के बाद कही थी । वो भी मुस्कुराया और एक और सवाल अपने पिता से किया - "पर आपने इतने सब लोगो को एक साथ लड़ने को मनाया कैसे ?"
बहादुर - "मैने नही मनाया" , ... थोड़ी देर शांत रहा और रोमी के हैरान चेहरे को देखकर बोला - हां , मैने नही मनाया, यही तो हमारी खूबी है। हमारी पुश्तों से हम साथ ही शिकार करते आए हैं। , हम हमेशा से ऐसे ही एक साथ मिलकर काम करते आए हैं,और आगे भी हम ऐसे ही साथ काम करते रहेंगे .... क्युकी हम लकड़बग्घे हैं। "
रोमी ने अपने पिता की ओर देखा , और मुस्कुराया , उसके सभी सवालों का जवाब उसे मिल चुका था , बहुत कम बोलकर भी उसके पिता ने उसके अंदर के डर ,हीनता ,कमजोरी को मार गिराया था । उसके अंदर एक परम संतोष था । वह अपने पिता के साथ गर्व के साथ बैठ गया ।
बाकी झुंड शिकार पड़े भैसे के टुकड़ों को इत्मीनान से खा रहे थे और कुछ ले जा रहे थे । आसपास खड़े बड़े जानवर चीता , भालू खड़े बस देख रहे थे । क्युकी जो आज उन्होंने देखा था उसके बाद किसी की हिम्मत नही थी की लकड़बग्घों से शिकार छीन सके ।
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