एक रोचक कहानी स्वामी विवेकानंद और उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस के बारे में प्रचलित है ।एक बार विवेकानंद अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस के पास गए। स्वामी विवेकानंद को उनके गुरु से एक महत्वपूर्ण सवाल पूछना था।
विवेकानंद ने पूछा, "गुरुदेव, क्या आप ईश्वर को देख सकते हैं?"
रामकृष्ण परमहंस हँसते हुए उत्तर दिया, "हाँ, मैं उसे देख सकता हूँ, वही तो सबसे महान चीज़ है।"
विवेकानंद आश्चर्यचकित हो गए और पूछा, "फिर आप मुझे उसे दिखा सकते हैं?"
रामकृष्ण परमहंस हँसते हुए उत्तर दिया, "हाँ, किंतु जब तुम उसके लिए तैयार हो जाओगे तब ।"
किंतु विवेकानंद बोले की में तैयार हूं। तब परमहंस ने उनसे कहा कि ठीक है। कल सुबह सूरज निकलने से पहले आना। भोर में आपको ईश्वर के दर्शन करवाया जायेगा।
गुरु के कहने पर विवेकानंद सुबह ही अपने गुरु के पास पहुंच गए । और उनसे कहा कि वे उन्हें ईश्वर के दर्शन करवाएं। परमहंस ने मुस्कुराते हुए उनसे कहा - " ठीक है, आओ मेरे साथ चलो।" वे विवेकानंद को आश्रम से थोड़ी दूर एक तालाब में ले गए । और उन्हें लेकर तालाब के जल में खड़े हो गए । और विवेकानंद से कहा की जल में डुबकी लगाओ, आपको ईश्वर दिखेंगे ।
जैसे ही विवेकानंद ने डुबकी लगाई , रामकृष्ण जी ने उनका सिर पकड़ कर पानी में थोड़ी देर के लिए दबा के रखा। जब सांस लेने के लिए विवेकानंद खूब झटपटा लिए , तब उन्होंने छोड़ा। जल से निकल कर विवेकानंद जी की जान में जान आई । उन्होंने हैरान होते हुए अपने गुरु से इस सब का कारण पूछा । तो परमहंस ने धैर्य से मुस्कुराते हुए कहा - तुम जल में किस लिए बैचेन हो रहे थे ?
विवेकानंद - "सांस लेने के लिए , जीवन के लिए ।"
परमहंस - " उस समय तुम्हे सांस लेने के विचार के अलावा और क्या विचार आ रहा था ?"
विवेकानंद - "कुछ भी नही । बस सांस लेने के लिए बैचेन हो रहा था ।"
परमहंस - "तो बस जिस दिन तुम्हे ईश्वर को देखने के लिए भी इतनी ही ललक और बैचैनी होगी । और उसके अलावा कोई और विचार मन में नही आयेगा , तब तुम्हे ईश्वर की प्राप्ति भी हो जायेगी ।"
विवेकानंद को बात समझ आ गई। की भटकते मन से कुछ भी प्राप्त नहीं होता। यह कहानी हमे भी अपने लक्ष्य के प्रति एकाग्रता रखने की सीख देती है।
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