स्वागत है आपका हमारे कहानी ब्लॉग में । हम लाए हैं आपके लिए Motivational Hindi Kahani में से Lord budhha story
यह बात उन दिनों की है जब सिद्धार्थ , ज्ञान प्राप्त कर बुद्ध बन चुके थे । और जगह जगह जाकर अपने ज्ञान के उपदेशों से उन्होंने धर्मचक्र- प्रवृधन( धर्म का चक्र घुमाना) प्रारंभ कर दिया था । उनसे प्रभावित होकर देश विदेश में उनके असंख्य भिक्षु बन गए थे । और बुद्ध का नाम दूर दूर तक प्रसिद्ध हो चुका था ।
बुद्ध ऐसे ही निरंतर एक जगह से दूसरी जगह जाकर लोगो में अहिंसा , शांति , एकता , समानता का संदेश देते थे। प्रत्येक जगह उनका सम्मान होता और वे एक भगवान की तरह पूजे जाते थे ।
इसी तरह बुद्ध एक बार एक नगर में गए । वहा नगर के बाहर उन्होंने एक पेड़ की छांव में ध्यान करने लगे । जैसे ही नगर वासियों को पता चला तो वे उनके पास आए और उनसे उपदेश लेने बैठ गए । बुद्ध ने ध्यान से उठकर अपने विचारो से उन सबका कल्याण करना शुरू किया ।
तभी अचानक एक महिला रोती हुई आती दिखाई दी ।उसके हाथ में एक दो साल के बच्चे का शव था । महिला विलाप करते हुए आई और बुद्ध के चरणों में गिर गई ।
प्रभु , यह मेरा बेटा है । इसकी अकस्मात मृत्यु हो गई है ।आप तो भगवान हैं, आप कुछ भी कर सकते हैं । आप मेरे पुत्र को जीवित कर दीजिए । नही तो मैं भी यही अपनी जान दे दूंगी ।
भगवान बुद्ध उसकी मनोदशा देखकर समझ गए की इस समय महिला को कोई सत्य या कोई ज्ञान समझ नही आयेगा ।
उन्होंने शांत स्वभाव से उसके बच्चे के शव को हाथ में लिया और अपने कृपा हाथो को उसके माथे पर रखकर कहा -" देवी ! आपका पुत्र जीवित हो सकता है । किंतु आपको इसके लिए एक जतन करना होगा । "
महिला के दिल को तसल्ली हुई ,- हे तथागत! में अपने पुत्र के लिए कुछ भी कर सकती हूं । आप जल्दी बताइए की क्या करना है ? "
बुद्ध बोले -" देवी ! आप मुझे इस नगर से शाम होने से पहले किसी भी घर से एक मुट्ठी राई मांगकर लाकर दीजिए , किंतु यह ध्यान रहे की वह घर ऐसा होना चाहिए जिस घर में कभी किसी की मृत्यु न हुई हो ।"
वह महिला यह उपाय सुनकर खुश हुई की एक मुट्ठी राई तो वह कही से भी ला सकती है ।कोई भी आसानी से दे देगा। वह यह सोचकर भागती हुई नगर में चली गई ।
सबसे पहले तो वह नगर के सेठ के यहां गई , उसने सोचा की इतना समृद्ध खुशहाल परिवार है यहां कैसे कोई मृत्यु हो सकती है। उसने सेठ के घर पर सारी बात बताकर एक मुट्ठी राई मांगी ।सेठ बोला की मेरे पिता जी की मृत्यु को अभी 8 महीने ही हुए हैं । तो मेरे दिए हुए राई आपके काम के नही है।
महिला निराश होकर वहा से चली , फिर उसके दिमाग में कुछ आया और उसे थोड़ी उम्मीद लगी । वह नगर के सबसे बड़े वैद्य के पास गई । उसे लगा की वैद्य तो सारी दवा और इलाज जानता है , तो उसके घर में कोई मृत्यु तो हुई नही होगी । किंतु वैद्य के घर भी उसे निराशा ही लगी , क्युकी वैद्य की पत्नी की मृत्यु 2 वर्ष पहले हुई थी ।
अब महिला नगर के मंदिर के महंत के घर गई । उसे लगा की हमेशा ईश्वर के चरणों में रहने वाले महंत जी के घर पे कभी इतनी बड़ी विपदा तो आ ही नहीं सकती। किंतु महंत ने भी पिछली साल अपनी बूढ़ी माताजी को खोया था । तो उसके यहां से भी उसे खाली हाथ लौटना पड़ा ।
ऐसा करते करते उसने गांव के अधिकतर घरों , से मांग कर देख लिया । उसे राई तो नही मिली , किंतु यह जरूर समझ आ गया की मृत्यु सबकी होती है । कोई ऐसा प्राणी नही है जो मृत्यु से बचा हो । यह एक अटल सत्य है । जो आया है वह जायेगा । महिला को समझ आ गया था की दुख उसे जरूर है । किंतु जो उसकी जिद थी एक मरे हुए को जीवित करने की वह व्यर्थ थी ।
वह खाली हाथ बुद्ध के पास लौट कर आई । बुद्ध समझ गए थे की महिला को जीवन का सार समझ आ गया है । उन्होंने महिला से कहा - पुत्री ! जन्म , मृत्यु यह एक चक्र है जो कभी नही मरता । अंतिम सत्य मृत्यु ही है । हमे नश्वर शरीर से मोह नही करना चाहिए । शरीर मर जाता है किंतु आत्मा अजर अमर है । वह किसी और शरीर में कही और फिर वापस आयेगी । अब अपने पुत्र के शव को लेकर जाओ और इसका अंतिम संस्कार करो ।
महिला अपने पुत्र के शव को लेकर एक भारी लेकिन संतुष्ट मन लेकर वहा से विदा हुई ।
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