वर्तमान भारत में एक बार फिर से UCC के मुद्दे पर बहस शुरू हो गई है मौजूदा सरकार इसे लागू करने के लिए रैलियों में बड़े-बड़े वादे करना प्रारंभ कर चुकी है ।आज कई लोग सरकार के UCC लागू करने के समर्थन में दिख रहे हैं और कई लोग इसका विरोध भी करते देखे जा सकते हैं। यह एक ज्वलंत मुद्दा है । इस वजह से हम सबके लिए यह बहुत जरूरी बन जाता है की जानें की आखिर यह UCC क्या है ? और क्यों इसका विरोध होता है । और क्या यह हमारे वर्तमान परिस्थिति में लागू होना जरूरी है ?
संविधान के अनुच्छेद 44 में नीति निर्देशक तत्वों में यह बात साफ कही गई है की राज्यों की जिम्मेदारी है की वे अपने यहां एकसमान नागरिक संहिता लागू करे। पर कुछ पर्सनल लॉ और राजनीति के कारण आज तक यह संभव नहीं हो पाया है।
क्या है UCC ? UCC definition
UCC की फुल फॉर्म uniform civil code है। हिंदी में इसे एकसमान नागरिक संहिता कहते है। Code या संहिता का अर्थ होता है - कुछ विशेष नियम व कानूनों का संग्रह जिसे किसी एक विशेष उद्देश्य के लिए लागू किया जाए।
इसका उद्देश्य सभी भारतीय नागरिकों के लिए एक जैसे नागरिक नियम और कानून सब पर लागू करना है ।
Ucc को समझने के लिए आपको पहले क्रिमिनल कोड और सिविल कोड के अंतर को समझना बहुत जरूरी है ।
क्युकी यूनिफॉर्म क्रिमिनल कोड तो भारत में सभी जगह पहले से लागू है। मुद्दा अब यूनिफॉर्म सिविल कोड लाना है ।
क्युकी मोटा मोटी तौर पर आम नागरिक को केवल यह लगता है की UCC का मतलब बस यह है की सब पर एक जैसा कानून लगेगा। किंतु यह एक बहुत गंभीर और विस्तृत
मामला है ।
Uniform criminal code और uniform civil code में क्या अंतर है ?
आइए इसे एक उदाहरण से समझे हैं।
मान लीजिए की कोई व्यक्ति A है, और उसने दूसरे व्यक्ति B को गोली या चाकू से मार दिया । तो यह माना जाएगा तो यह माना जाएगा कि व्यक्ति ने केवल B को मारा ही नहीं बल्कि समाज की एक मूल्यवान मर्यादा को भी भंग किया है ऐसे में व्यक्ति एक हो यह कृत्य क्रिमिनल कोड के अंदर देखा जाता है और क्रिमिनल लॉ के अनुसार दोषी को चाहे वह किसी भी धर्म जाति समुदाय या जनजाति से हो उसके लिए एक तरह का ही सजा का प्रावधान है।
चोरी हत्या लूटपाट डकैती आदि अपराधों के लिए क्रिमिनल कोड (आपराधिक मामले ) के अंतर्गत एक समान सजा दी जाती है।
इस तरह के केस को कोर्ट में "व्यक्ति A बनाम राज्य" या "व्यक्ति A बनाम भारत सरकार"का नाम दिया जाता है और इसकी सुनवाई आईपीसी तथा सीआरपीसी में दिए गए प्रावधानों के अंतर्गत सभी लोगों के लिए समान रूप से कार्य करता है।
जबकि दो व्यक्तियों के बीच क्रिमिनल केस के अलावा पर्सनल लॉ विवाद जैसे शादी, विवाह, जमीन की खरीदारी, आपसी संबंध आदि सिविल लॉ के अंतर्गत आते हैं। इस तरह के केस हो कोर्ट में "व्यक्ति A बनाम व्यक्ति B" के नाम से जाना जाता है। इस तरह के केसों में व्यक्ति को सजा या न्याय उनके पारंपरिक माहौल या पर्सनल धार्मिक नियमों को देखते हुए फैसला किया जाता है। यही एक विवाद है जिसके लिए यूसीसी के बारे में बार-बार मुद्दा उठाया जाता है।
उदाहरण के लिए भारत के अधिकांश स्थानों पर किसी समुदाय में एक ही विवाह का प्रावधान है जबकि दूसरे समुदाय में व कई जनजातियों में कई विवाहों का प्रावधान है और उनकी चली आ रही परंपरा के वजह से इसे सही भी मानते हैं। इसी तरह के अन्य कई रीति रिवाज और धार्मिक परंपराओं की वजह से लोगों में एक तरह का सिविल कानून नहीं लाया जा सका है। यह जो विसंगतियां है उन्हें सभी के लिए समान करने का प्रयास किया जा रहा है यही यूसीसी में प्रावधान है।
क्यूं कठिन है यूनिफॉर्म सिविल कोड लाना ?
भारत विविधताओं का देश है । इसमें हर धर्म, जाति , जनजाति , समुदाय के लोग रहते है, जिसके कारण उनके रहने का तरीका , उनकी सभ्यता और नियमों में बहुत अधिक विविधताएं पाई जाती है । उदाहरण के तौर पर देखे की एक ही धर्म समुदाय के लोगो का अलग स्थान के लोगो की मान्यताओं में कितना अंतर मिलेगा आप समझिए । दक्षिण भारत में हिन्दू समुदाय में एक ही गांव में या गांव के चाचा ताऊ के बच्चो से शादी करना आम बात है , किंतु अगर आप यही उत्तर भारत में देखे तो यह एक बहुत बड़ा अपराध माना जाता है । हरियाणा की खाप पंचायतें तो इस तरह के विवाह , संबंध आदि के काफी खिलाफ रहती है। इसकी वजह से ऑनर किलिंग तक कर दी जाती है ।
अब आप खुद समझिए की अगर एक जैसा पर्सनल लॉ लगाया जाए तो इनमे से किसको सही ठहराया जाए ? किसकी मान्यता सही मानी जाए? एक समूह को खुश किया जाए तो दूसरे उसका विरोध करेंगे । अतः इतनी विविधताओं , और अलग अलग मान्यताओं वाले देश में सबको एक तराजू में तौलना बड़ा ही कठिन काम है ।यही कारण है की ucc का भारत के कई इलाकों में जोरदार विरोध होता है । और यह मुद्दा केवल शादी तक ही सीमित नहीं है । बल्कि उत्तराधिकार से भी संबंधित है । महिलाओं को अपने पिता की संपत्ति में अधिकार देने के विषय में,तलाक देने के तरीकों में , तलाक के बाद महिलाओं को उनका गुज़ारा देने में, विधवा पुनर्विवाह में , आदि सब में अलग अलग स्थान , समुदाय , धर्म , जातियों , और जनजातियों में अपने अपने तरीके और प्रथाएं है जो सदियों से चली आ रही है और लोग उन्हे दिल से मानते भी चले आ रहे है । और ऐसे में एक नया कानून आए और सबकुछ बदल दे तो इतनी जल्दी ये बदलाव लोगो को कैसे हजम होगा ।
एक तरफ अनुच्छेद 44 के अनुसार सबके लिए एक समान सिविल कानून लगाने की बात कही गई है । उसको मानने में समस्या होती है । जबकि दूसरी तरफ अनुच्छेद 25 में दिए धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को आधार बनाकर लोग अपने अपने पर्सनल लॉ चलाते और मानते आ रहे है।
निष्कर्ष -
वर्तमान में कई ऐसी विसंगतियां हैं ,जिनको पर्सनल लॉ के नाम पर सालो से महिलाओं , युवाओं, आदि को प्रताड़ित किया जा रहा है। अतः UCC का होना तो आवश्यक है । पर इसे लागू करने के तरीकों को ध्यान देने की जरूरत है ।
UCC चाहते तो सब हैं, बस उनकी शर्त यह है की कानून वो लागू हो जिसे वे खुद मानते हैं, दूसरो के नही। बस यही एक समस्या इसके लागू होने में रोक लगाती रहती है ।
उम्मीद है आपको यह जानकारी पसंद आई होगी । ऐसी ही ज्ञान वर्धक विषयों के बारे में जानने के लिए हमें follow करना ना भूलें।
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