मुझको हर बार गिराती है
मुझको हर बार उठाती है
लगता है जेसे ज़िन्दगी
कुछ तो सिखलाना चाहती है ||
हँसाती है, रुलाती है
जीवन का लक्ष्य बनाती है
में काबिल हूं इसके या नही
ये पता लगाना चाहती है
उम्मीद खतम जब हो जाती
ये राह नई दिखलाती है
लगता है जेसे ज़िन्दगी
कुछ तो सिखलाना चाहती है ||
मै थमा नही मै थका नही
लड़ने की ज़िद है रुका नही
गिर गिर के फिर उठ जाता हूँ
हालात के आगे झुका नही
पहले तो ठोकर देती है
फिर झट से गले लगाती है
लगता है जेसे ज़िन्दगी
कुछ तो सिखलाना चाहती है ||
सोना जितना भी तपता है
उतना ही और निखरता है
जो हार के हार नही माने
रक्त उसका और दमकता है
लगता मुझसे भी कुछ ऐसा
ज़िन्दगी उम्मीद लगाती है
मै लक्ष्य बनाऊ क्या छोटे
ये सपने बड़े बनाती है
लगता है जैसे ज़िन्दगी
कुछ तो सिखलाना चाहती है ||
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very nic line.....sir g
ReplyDeleteVery nice sir
ReplyDeleteVery nice sir
ReplyDelete1 no bhai...kya khoob likha hai
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