इक किताब का सूखा फूल

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इक किताब का सूखा फूल
फिर याद तेरी है दिला गया
वो दबी छिपी धुँधली तस्वीरें
दिल में फिर से सज़ा गया
इक किताब का सूखा फूल ........

दो चार पंख है टूट चुके
कुछ उड़ा हुआ सा रंग भी है
है सूख चुकी पत्ती पत्ती
इसकी लकड़ी तो भंग भी है
पर महक अभी भी है बाकी
ये देख के दिल तो दंग भी है
मुश्किल से भुला जो पायी थी
उन सब बातो का संग भी है
तेरी यादो की खुशबू से
है दर्द पुराने जगा गया
इक किताब का सूखा फूल
फिर याद तेरी है दिला गया||

है फूल तो मैंने हटा दिया
अब भी पन्ने पर छपा हुआ
कैसे फेकू में इसको अब
ये तो है दिल से जुड़ा हुआ
हस रहा मेरी लाचारी पर
अब भी टेबल पर रखा हुआ
पर फिर भी आता प्यार मुझे
इतना है दिल से लगा हुआ
आँखो के सामने रहकर के
मेरी आखो को भीगा गया
इक किताब का सूखा फूल .......
फिर याद तेरी है दिला गया||

क्यों जब भी भूलना मैं चाहु
कुछ न कुछ याद दिलाता है
धीरे धीरे भर तो जाए
कोई नए ही घाव लगाता है
कहने को तो बस फूल ह ये
पर दिल में दर्द जगाता है
याद तेरी आ जाये मुझे
ऐसे हालात बनाता है
हर एक पुरानी यादो को
मेरी पलको पे सज़ा गया .....
इक किताब का सूखा फूल 
फिर याद तेरी है दिला गया||

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