मन और दिल

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घड़ी की टिक टिक सुनता हूँ
अब रातो को सुन्सानो में
मन की खिड़की से निकले कुछ
झोंके कहते हे कानो में
इतना अरसा है बीत चुका
यादो को क्यों न सुला पाया
वो तो सबकुछ है भूल चुकी
तू उसको क्यों न भुला पाया ||

क्यों आज भी जगता रहता है,
उसकी यादो को भुनाने में |
वो अपने को है भूल चुकी ,
तू लगा ह सपने बनाने में |
अब भी दिल की देहलीज़ों पर
क्यों बेठा आँख बिछाए है
इक दिन फिर से वो आएगी
ऐसा दिल को भरमाये है
क्या मिला तुझे ये सब करके
तू बस खुद को है रुला पाया
वो तो सबकुछ है भूल चुकी
तू उसको क्यों न भुला पाया ||

ये सब सुनते सुनते मेंरे
दिल की चुप्पी है बोल उठी
बंजर सूखी धरती दिल की
तब पीड़ा से है डोल उठी
माना मुझको है भूल चुकी
पर प्यार भुला न पायेगी
दर्द उसे भी है इतना
वो लौट के वापस आएगी
कैसे जीना है बिन उसके
ये खुद को न समझा पाया
शायद मझको वो भूल चुकी
में उसको नही भुला पाया||

इस तरह मेरे अब मन और दिल
आपस में लड़ते रहते है
नीद कहाँ से आये मुझे
बस आँसू झड़ते रहते है
माना की बोला था तुमने
मुझे प्रेम परीक्षा दे दो तुम
भूल जाओ मुझको बस
इतनी सी इक्षा है दे दो तुम
मैने कोशिश तो की है पर
जीत नही मै पाया हूँ
प्यार मेरा सच्चा है पर तुझे
भूल नही में पाया हूँ||


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2Comments

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  1. bahut khoob dear ,,,, ummid hai aise aor padne ko milengi,,,,,
    gazb likhte ho

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  2. बढ़िया सुन्दर अप्रतिम

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